Unani By Dr. Shabistan Fatma Taiyabi
रोगों के असबाब, अलामात, तस्खीस तथा ईलाज के अध्यन में सरलता हेतु, यूनानी चिकित्सा पद्धति मे रोगों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया गया है।
बुन्यादी तौर पर रोग दो प्रकार का होता है: अमराज मुफर्दा एवं अमराज़ मुरक्कबा
A. अमराज मुफर्दा : ये मर्ज बुन्यादी तौर पर आजा ए मुफर्दा को लाहक होता है। ये तीन प्रकार का होता है :-
a. सुए मिजाज़ : ये वह मर्ज है, जिस में आजा ए मुफर्दा का मिजाज असामान्य अर्थात विकृत हो जाता है। ऐसे मर्ज सोलह प्रकार के होते हैं।
b. सुए तरकीब : ये वह मर्ज है जिस में आजा ए मुफर्दा का बनावट में विकृति अर्थात शरीर रचना असामान्य हो जाता है।
c. तफ्फरूक ए इत्तासाल : ये वह मर्ज है जिस में आजा मे उसका निरंतरता भंग हो जाता है। ये रोग, आजा ए मुफर्दा तथा आजा ए मुरक्काबा दोनो को हो सकता है। जैसे कट जाना, टूट जाना इत्यादि।
B. अमराज़ मुरक्कबा : ये वह मर्ज है जिस में एक समय में एक से अधिक अमराज ए मुफर्दा किसी अंग को हो जाय। ये रोग आजा ए मुरक्कबा मे होता है।
आजा ए मुरक्कबा, वो अंग है जो आजा ए मुफर्दा के मिलने से बनते है। इसे आजा ए आलिया भी कहा जाता है।
अमराज़ सुए तरकीब: ये चार प्रकार का होता है।
१. अमराज़ ए खिलकत: ये वो मर्ज है जिस में आजा (अंग) बनावटी अर्थात पैदाईसी तौर पर असामान्य हो। इनकी भी चार किस्मे हैं।
a. अमराज़ ए शक्ल: इसका अर्थ है कि किसी भी अजू (अंग) का शक्ल तबई (सामान्य) से बदल जाए, जिस से उसके फेल (कार्य) में कोई खराबी आ जाए। उदाहरण - गोल उजू का सीधा हो जाना या चिपटे उजू का गोल हो जाना, इत्यादि।
b. अमराज़ ए मजारी: मजारी का अर्थ होता है नाली। मजारी में तीन प्रकार के मर्ज होता है।
(क) जीक ए मजारी : मजारी का तंग अर्थात पतला हो जाना।
(ख) इत्तासा ए मजारी : मजारी का फैल जाना।
(ग) इंसदाद ए मजारी : मजारी का बंद / जाम हो जाना।
c.अमराज़ ए आवैया: आवैया को ताज़वीफ भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है कि किसी अंग में पाया जाने वाला खाली स्थान। इसकी चार प्रकार की बीमारी होती है।
(क) इत्तासा ए ताज़वीफ: अजु का ज़ौफ फैल जाय या बड़ा हो जाय।
(ख) ताजिक ए ताज़वीफ : अजु का ज़ौफ सिकुर जाय या छोटा हो जाय।
(ग) मसदूद ए ताज़वीफ : अजु का ज़ौफ बंद हो जाय या भर जाय।
(घ) खला ए ताज़वीफ : अजु का ज़ौफ खाली हो जाय।
d. अमराज़ ए सफायेज: इसे अमराज़ ए सतुह भी कहा जाता है, उसकी दो सुरतें हैं -
प्रथम सूरत : जिन सतहों को खुरदुरा होना चाहिए वो चिकना हो जाय।
द्वितीय सूरत : जिन सतहों को चिकना होना चाहिए वो खुरदुरा हो जाय।
२. अमराज़ ए मिकदार : इस में मात्रा असामान्य हो जाता है।
इसकी दो सुरतें हैं -
प्रथम सूरत :मात्रा में अधिक हो जाय, जैसे दा उल फील में ।
द्वितीय सूरत : जिस में मात्रा मे कमी हो जाय हो जाय जैसे लागरी या दिक के रोग में।
३. अमराज़ ए अदद:इस में संख्या असामान्य हो जाता है।
इसकी दो सुरतें हैं -
प्रथम सूरत : संख्या में अधिक हो जाय, जैसे एक हांथ में छ: अंगुली का होना।
द्वितीय सूरत: जिस में संख्या मे कमी हो जाय हो जाय जैसे किसी अंग की संख्या सामान्य से कम हो जाए ये पैदायसी अथवा बाद में भी हो सकता है ।
४. अमराज़ ए वजअ : इस में उजू (अंग) के स्थान में परिवर्तन हो जाता है। इसकी चार सुरतें हैं।
१. उजू (अंग) पूरे तौर पर अपने स्थान से हट जाए।
२. उजू (अंग) अपने स्थान से हटे बगैर टल जाए।
३. उजू (अंग) अपने स्थान पर असमनान्य हरकत करना।
४. उजू (अंग) अपने स्थान को इस तरह पकर लेना की कोई हरकत ही न हो सके।